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चंद्रा टाइम्स

चंद्रा टाइम्स

अंतरजातीय विवाह - चांदनी झा द्वारा रचित यह कहानी पढ़कर आपको भी आंख में आंसू आ जाएंगे




 चंदनपुर गांव में राजन नाम के एक ब्राह्मण रहते थे वह काफी पढ़े लिखे थे यह घटना लगभग 1975 से 1980 के बीच की होगी राजन लगभग उस समय तीन से चार विषय में एम० ए० की उपाधि ले रखे थे उसे बैंक आदि कई जगहों पर नौकरी भी मिली पर वे नहीं किये उसका मानना था कि हम इतने पढ़ लिखकर सरकार की गुलामी नहीं करेंगे सरकारी नौकरी में सरकार के मन की बात है मन होगी तो छुट्टी मिलेगी नहीं तो नहीं मिलेगी यह सब कुछ सोच कर उन्होंने व्यवसाय करने का निश्चय किया और कई तरह के व्यवसाय करना शुरू किया पहले उन्होंने बर्तन का एक दुकान खोला उससे उसे कोई फायदा नहीं हुआ और तो और वह कर्ज में डूब गया फिर उन्होंने बैंक से लोन लिया और सब्जी की खेती करने लगे उसमें भी उसे कोई फायदा नहीं मिला बैंक से लिया गया सारा लोन भी खर्च हो गया ना तो उसका व्यवसाय ही साथ दिया और ना ही कोई भी कर्ज टूटा उसी बीच उसकी शादी बलरामपुर नाम के एक गांव में हुआ उसकी पत्नी का नाम रूपवती थी रूपवती अपने नाम के बिल्कुल विपरीत थी। देखने में तो रूपवती काली मां से भी काली थी पर वह भी उसे समय की पढ़ी-लिखी विदुषी महिला थी जब शादी हुई उसे अपने पति के साथ बहुत दुख काटना पढ़ता था क्योंकि उनके पति पांच भाई में सबसे छोटे थे और रूपवती के शादी से पहले ही उसके साथ ससुर चल बसे थे भला भाई किसका होता है किसी किसी दिन तो भोजन मिल जाते एक समय और किसी दिन तो वह भोजन भी नसीब नहीं होता कई रात भूखे सोने पढ़ते थे इसी तरह कुछ दिन बीता जब रूप बत्ती से दुख सहा नहीं गया तो उसने राजन से बोली आप इतना पढ़े हैं गांव में सबसे ज्यादा आपसे कम पढ़े लिखे आदमी सब अच्छा नौकरी करता है कम से कम उसके परिवार को दो रोटी खाने के लिए किसी की मोहताज तो नहीं होना पड़ता अब हमसे इतना दिन भूखे नहीं रहा जाता अगर आप कुछ नहीं करेंगे तो मैं ही कोई काम करने की सोचती हूं पर जो आदमी आज तक खुद नौकरी ना किया हो और जिसे नौकरी से इतना नफरत है वह भला अपनी पत्नी को नौकरी कैसे करने देते जब भी उसकी पत्नी नौकरी  की बात करती थी वह समझने लगता था कि किसी के अंदर काम नहीं करना चाहिए कुछ दिन इसी तरह बीत गया जब राजन कुछ ना कर सका और अब तो राजन को एक पुत्र और एक पुत्री की भी प्राप्ति हुई घर का खर्च बढ़ गया राजन के पुत्र का नाम सरोज और पुत्री की नाम संध्या थी जब कई रात तक सबको भूखे सोने पड़ते तो यह दुख रूपवती से देखा नहीं गया और उन्होंने निश्चय किया कि अब जो हो मुझे अपने बच्चों के लिए नौकरी करना ही होगा नहीं तो मेरे बच्चे भूख से मर जाएंगे उस समय आंगनवाड़ी सेविका का फॉर्म आया और रूपवती ने फॉर्म भर दी कुछ दिन बाद रूपवती को आंगनबाड़ी केंद्र में नौकरी लग गई सरकार के तरफ से जो आंगनवाड़ी के लिए राशन आता था उसी से उसका घर भी चलता था अब तो उसे खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं होती थी दोनों बच्चे भी पढ़ने लगे आगे चलकर सरोज अभियंता की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए और पुत्री संध्या अपने जिला के किसी कॉलेज से बीसीए की पढ़ाई कर रही थी उसी बीच में उसे मोहन नाम के लड़का से प्रेम हो जाता है जो जाति के जुलाहा थे पर शहर के हाव - भाव देख कर संध्या को पता नहीं चला कि मोहन जुलाहा है जब शादी का समय आया तब संध्या को यह बात पता चला कि मोहन जुलाहा है तब तक तो संध्या और मोहन का प्रेम शिखर पर चला गया था एक दिन की बात है मोहन ने संध्या को बोला संध्या अब शादी कर लो मेरी मां बहुत बीमार रहती है उसे अब खाना भी नहीं बना होता इस पर संध्या बहुत गुस्सा गई बोली जुलाहा में ब्राह्मण हूं और मैं जुलाहा से शादी कभी नहीं करूंगी तुम सोच भी कैसे लिया संध्या ने यह बोल कर अपने घर आ गई यह सुनते ही मोहन ने एक आम के पेड़ सामने दिखा उसमें जाकर फंदा से लटक गया हर जगह हल्ला हो गया की संध्या के कारण मोहन का जान चला गया पर कोई कर भी क्या लेगा। 



बेचारे मां-बाप का मोहन एक ही बेटा था मां बाप के जीने का सहारा मोहन था अब वही चला गया किसके लिए जिंदा रहूं सबके सामने मोहन की मां पापा हाथ जोड़कर गिर गिराया पर गरीब की समाज में कौन सुने जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत थी उसमें भी छोटी जाति के साथ तो कुछ भी हो उसका कोई नहीं है समाज में कुछ दिन बाद संध्या के भाई सरोज जो कि दिल्ली में अभियंता की पढ़ाई कर रहा था उसे भी एक डॉक्टर की तैयारी कर रही मुस्लिम छात्रा आसमां से प्रेम हो गया और वह दोनों कोर्ट में जाकर शादी भी कर लिए यह बात जब सबको पता चला गांव में बहुत हंगामा होने लगा आसमां के पिता सरोज के खून के प्यासे हो गए और वह 8-10 आदमी के साथ सरोज के घर गए और बहुत गाली गलौज करके लौट आए सरोज को खोजने के लिए आसमां के पिता ने बहुत सारे आदमी को लगा दिये। दिल्ली के बहुत सारे नेता ने सरोज की मदद की उसे अपने घर में रखा कुछ दिन बाद यह हल्ला शांत हो गया यह सब सुन के गांव में संध्या की शादी में बहुत दिक्कत हो रही थी सब गांव के आदमी बोलते थे कि यह लड़की के कारण एक लड़का मर गया और तो और इसका भाई भी मुस्लिम लड़की से शादी की कौन उसके घर मैं रिश्ता करेगा उसके घर की कौन खाना पीना खाए बहुत दिन बीत गए संध्या के उम्र निकल रही थी शादी के यही चिंता उसकी मां-बाप को सता रही थी कौन मेरी बेटी से शादी करेगा तब उसी गांव के एक आदमी ने जब एक मंदिर में संध्या के मां पापा को रोते हुए देखे और रोने का कारण पूछा उन्होंने सारी कहानी बता दी वह आदमी बोले संध्या बेटी की शादी हम अपने बड़े पुत्र अमन से करेंगे शादी की तैयारी कीजिए बड़े धूमधाम से अमन और संध्या की शादी संपन्न हो गई पर शादी में संध्या के भाभी आसमां नहीं आई क्योंकि वह मुस्लिम थी और उसे समाज जल्दी स्वीकार नहीं करते तब राजन और रूपवती दोनों दिल्ली गए और मंदिर में सारे रस्म रिवाज के साथ आसमां और सरोज का शादी करवाया फिर भी गांव वाले के डर से उसे 2 साल तक गांव नहीं लाया शादी के बाद के जितने रस्म रिवाज होते हैं हिंदू धर्म में जैसे ‌:- बट सावित्री, मधुश्रावणी आदि पर्व में दिल्ली जाकर ही आसमां के सास ससुर रूपवती और सरोज सारे  रसम पूरा करते थे बहुत दिनों के बाद गांव वाले को सरोज के  मां बाप ने हाथ जोड़ा और बोलने लगे एक ही बेटा है सरोज मेरे कैसे छोड़ दूं और फिर खून तो हर मनुष्य के शरीर में एक ही है चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम हम तो अपनी बहू को गंगा नहा कर सारा हिंदू रस्म  से शादी करवाएं हैं। अब तो वह भी हिंदू बन गई है धीरे-धीरे सब गांव वाले राजन और रूपवती के बात मान गए और  उसके बहु को गांव लाने की अनुमति दे दिए तब राजन और रूपवती आसमां को गांव ले आए और बहुभोज का आयोजन किया पूरे गांव वाले खाने आए इस तरह सब हल मिल कर रहने लगे।

 यह कहानी समाज के छुआछूत , पर्दा प्रथा से बाहर औरतों को निकलने नौकरी करने और अपने मन से विवाह करने की और इंगित किया गया है इस कहानी से यह सीख मिलती है कि शिक्षा प्राप्त करके आदमी स्वतंत्र अवस्था में जी सकता है और समाज को भी गलत करने से रोक सकता है इस कहानी में चांदनी ने शिक्षा के महत्व को  और छुआछूत को मिटाने का प्रयास की है।

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