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चंद्रा टाइम्स

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कोसी नदी के कटाव के कारण लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर




कैदली पंचायत के वार्ड नंबर 7 में कटाव से प्रभावित लोगों ने बताया कि पिछले कई दिनों से उनके घरों में चूल्हा नहीं जल रहा है। परिवार के सदस्य अपने सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में परेशान हैं, और बच्चों को पाउडर के दूध से गुजारा करना पड़ रहा है।

कोसी तटबंध में कटाव ने फिर से उठाया सिर: 2016 की यादें ताजा

सहरसा जिले के नवहट्टा अंचल क्षेत्र में कोसी तटबंध के भीतर रहने वाले लोगों को वर्ष 2016 की भयावह यादें फिर से सताने लगी हैं। घटते-बढ़ते जलस्तर के बीच, कोसी के पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के भीतर कटाव ने फिर से उग्र रूप धारण कर लिया है। तटबंध के भीतर बसी तीन पंचायतों—हाटी, कैदली और नौला के लोग कोसी नदी के कटाव से त्रस्त हैं और मजबूरन अपने घरों को तोड़कर दूसरी जगह पलायन कर रहे हैं।

कैदली पंचायत में कटाव ने 4 दर्जन से अधिक परिवारों का आशियाना बहाया

कैदली पंचायत में कटाव के चलते चार दर्जन से अधिक परिवारों के घर कोसी नदी में समा गए हैं। सैकड़ों लोग अपने घरों के कट जाने के डर से सहमे हुए हैं और ऊंचे स्थानों पर पलायन कर रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में कैदली पंचायत के वार्ड नंबर 7 के दो दर्जन से अधिक परिवारों का आशियाना नदी में विलीन हो चुका है। कटाव से प्रभावित लोगों ने बताया कि उन्हें पूरी रात अपने बच्चों के साथ जागकर बितानी पड़ रही है। रात में जब नदी में लहरें उठती हैं, तो कटाव तेज हो जाता है और उनकी सांसें अटक जाती हैं।

2016 की त्रासदी से आज भी उबर नहीं पाए लोग: झुग्गी-झोपड़ी में जीवन यापन

नवहट्टा के लोग अभी भी आठ साल पहले की भयानक स्थिति को याद करके सिहर उठते हैं। वर्ष 2016 के भीषण कटाव में कैदली पंचायत के छतवन गांव के सैकड़ों परिवारों का आशियाना कटकर नदी में समा गया था। उन लोगों को यह त्रासदी झेले हुए लगभग 8 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन वे आज भी कोसी के पूर्वी तटबंध के किनारे झुग्गी-झोपड़ी बनाकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं।

प्रशासन की लापरवाही: राहत सामग्री और नाव की व्यवस्था की कमी

कैदली पंचायत के वार्ड नंबर 7 के कटाव पीड़ितों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से उनके घरों में चूल्हा नहीं जल पा रहा है। पूरा परिवार सामान समेटने और उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में परेशान है। बच्चों को पाउडर के दूध से गुजारा करना पड़ रहा है। प्रशासन की ओर से खाने-पीने और राहत सामग्री के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं की गई है। सरकारी नाव भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है, इसलिए उन्हें निजी स्तर पर नाव की व्यवस्था कर ऊंचे स्थानों पर सामान पहुंचाना पड़ रहा है।








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