कोसी के कछेर पर स्थित सहरसा जिला भले ही आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हो, लेकिन इसकी सांस्कृतिक, साहित्यिक, और धार्मिक विरासत बेहद गौरवशाली और समृद्ध है। जिले में कई ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के मंदिर हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण स्थल है सोनवर्षा राज प्रखंड के विराटपुर गांव में स्थित मां चंडी मंदिर, जो देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है।
मां चंडी मंदिर का प्राचीन इतिहास ( The Miracle of Maa Chandi Sthan in Biratpur )
मां चंडी मंदिर की स्थापना का इतिहास हजारों वर्षों पुराना माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल के दौरान पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां मां चंडी की पूजा-अर्चना की थी। बिहार पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट और पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए दो बार के सर्वेक्षणों में भी इस मंदिर की प्राचीनता की पुष्टि की गई है। खुदाई से प्राप्त अवशेषों से यह सिद्ध होता है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है और लोगों की प्रमुख आस्था का केंद्र रहा है।
पांडवों की पूजा और आर्शीवाद
ऐसा माना जाता है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे, तब उन्होंने यहां मां चंडी की पूजा की और मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर विजयश्री का आर्शीवाद दिया। यहां प्राप्त काले और चमकदार पत्थर की मूर्तियां पालयुगीन सदी की हैं, जिन पर तिब्बत और चीनी कलाओं का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। मंदिर के द्वार के सामने स्थित मां छिन्नमस्तिका का चबूतरा काले पत्थर का बना हुआ है और इसके ऊपर दिशा यंत्र अंकित है। मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद इस सिंहासन की पूजा भी की जाती है।
मां चंडी मंदिर का रहस्यमय कुंड
मंदिर परिसर में एक छोटा कुंड भी है, जो मां चंडी की प्रतिमा के बगल में स्थित है। इस कुंड में डाला गया जल हमेशा एक समान स्तर पर रहता है, जो यहां की एक विशेषता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, मां छिन्नमस्तिका को चढ़ाया गया जल गुप्त मार्ग से महिषी की मां उग्रतारा और धमाहरा की मां कत्यानी तक पहुंच जाता है। इस प्रकार, यहां पूजा करने से भक्त को तीनों स्थानों की भगवती के पूजन का फल प्राप्त होता है।
मंदिर सुबह 5 बजे से संध्या 5 बजे तक खुला रहता है।
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