पंकज कुमार यादव , सोनवर्षा राज सहरसा : मैना स्थान मां भगवती महामाया विषहरी माता की पूजा मैंना गांव में हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। उक्त पवित्र स्थल सोनबरसा प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर दक्षिण स्थित है। पवित्र श्रावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मैना पंचमी मनाया जाता है। विषहरी माता भगवती की पूजा बड़े आस्था और विश्वास के साथ एनएच मुख्य सड़क किनारे भव्य मंदिर मे होता है।पूजा के दिन भारी भीड़ महिला पुरुष का जुटता है। बुजुर्ग बताते है कि करीब 300 वर्ष पहले से यानी 1700 ई से ही धुमधाम से करने का अनुमान लगाया जा रहा है। सबसे पहले मां भगवती की पूजा वर्तमान मंदिर से पश्चिम गांव पर एक छोटे से कच्चे मकान में करने की बात कहा जा रहा है। करीब 50 वर्ष तक इसी कच्चे मकान में मां भगवती की पूजा किया गया। करीब 1750 ई में वर्तमान भगवती मंदिर परिसर में एक कच्चे मकान में स्थापित किया गया था। कुछ समय के बाद सोनवर्षा राज स्टेट के महाराजा हरिवल्लभ नारायण सिंह के द्वारा पक्का मकान बनवाया गया था। महाराजा हरिवल्लभ नारायण सिंह ने मां भगवती के नाम जमीन भी दिया। कुछ लोग बताते हैं कि मां भगवती की जमीन की दान देहद निवासी योगेन्द्र नारायण सिंह के पूर्वज मुन्ना सिंह या इनके वंशज द्वारा भी देने की बात कही जा रही है। कहा जाता है कि करीब 200 वर्षों तक सोनवर्षा राज स्टैंट महाराजा हरिवल्लभ नारायण सिंह के द्वारा निर्मित पुराने मंदिर में मां भगवती की पूजा अर्चना किया गया। 2002 ई में मां भगवती महामाया को नये मंदिर में स्थापित किया गया, जहां पर अभी मां भगवती की पूजा अर्चना भव्य तरीके से हो रही है। भव्य मंजूषा भी चढ़ाया जाता है जो आकर्षण का केंद्र बनता है। ऐसी मान्यता है कि पूजा के दिन मंत्र का भी सिद्धि करने भक्तजन यहां आते है और माता से गुहार लगाते है। बताया जाता है कि दिवारी स्थान से पहले से मैना गांव में मां भगवती की पूजा अर्चना शुरू हुआ था। ये स्थल काफी प्रसिद्ध है। मां भगवती मंदिर मैना में पहले काफी संख्या मे छागर का बली प्रदान किया जाता था। लेकिन 1870-80 के करीब बली प्रदान करने की प्रथा के विरुद्ध कुछ लोग एकत्रित हो गया और गांव दो गुटो में हो गया, जिसमें एक गुट बलि प्रदान करने के पक्ष में थे तो दूसरा गुट बलि प्रदान नही करने के पक्ष में थे। कफी समय तक इस बात को लेकर मैना गांव में समाज में काफी तनाव की स्थिति बनी रही। काफी पहल बाद सहमति बनी। 1981 के करीब दोनों गुटों की आपसी बैठक हुई और दोनों गुट बलि प्रदान नहीं करने के पक्ष में सहमति दिया। उसके बाद बलि प्रदान करने की प्रथा खत्म कर दिया गया और तनाव खत्म हुआ। आज भी बलि प्रदान नहीं किया जाता है केवल माता के दरबार में छागर का परीक्षा करवा कर भक्तो को वापस भेज दिया है। करीब 1961 के पहले से ही नाग पंचमी के अवसर पर मां भगवती की भव्य पूजा अर्चना का आयोजन होता हुआ आ रहा है। आज भी हो रहा है। करीब 1961 से ही नाग पंचमी के अवसर पर मेला एवं रात्रि में मां विषहरा नाट्य कला परिषद के द्वारा नाटक का मंचन या सांस्कृतिक कार्यक्रम होते आ रहा है।पहले की मान्यता था कि जब क्षेत्र में सुखार यानी वर्षा नहीं होती थी तो उस समय वर्षा कराने के लिए श्रद्धा भाव से मैना गांव के प्रत्येक घर से कम से कम एक व्यक्ति एक एक दिन में कमलदह से कमल के पुष्प जब मां भगवती को अर्पित करता था तो वर्षा होने लगती थी। किसान भी खुसहाल होकर कुमारी कन्या का खिरभोजन कराते थे। ऐसा भी कहा जाता है. कि जब कमल के पुष्प लेकर मैना गांव के ग्रामीण आधे रास्ते में आते होते उसी समय से वर्षा होना शुरू हो जाता था। मां भगवती की मान्यता था कि मैना गांव के ग्रामीणों का मौत सर्प दंश से नहीं होगा।आग लगने से केवल एक ही घर जलता है दूसरा नहीं ऐसी माता की असीम कृपा है। ऐसा मान्यता अभी भी है कि जो जितने श्रद्धा भाव से मां भगवती की पूजा अर्चना करता है उसका मनोकामना उसी तरह से माता महामाया विषहरी माता पूर्ण करती है। माता विषहरी भगवती नाट्य कला परिषद् के कोषाध्यक्ष चनरदेव यादव उर्फ पहलवान ने बताया कि विषहरी माता की मेला को लेकर सारी तैयारी जोर शोर से किया जा रहा है। वहीं पंचायत समिति सदस्य संघ के जिला अध्यक्ष एवं नाटक कला परिषद के अध्यक्ष आजाद कुमार ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी संस्कृति कार्यक्रम गौरव ठाकुर, एवं उषा यादव के द्वारा, रात्रि में कार्यक्रम आयोजित होगा वहीं बात करें सुरक्षा की दृष्टि कोण से तीसरे आंख सीसी कैमरे से भी निगरानी रखी जाएगी।
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