अतलखा, विशेष संवाददाता। हर साल दुर्गा पूजा के अवसर पर अतलखा में एक भव्य मेला का आयोजन होता है, जो स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा, उत्साह और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यह मेले का आयोजन कई दशकों पहले बड़गांव के जमींदार स्वर्गीय हिरा झा द्वारा स्थापित किया गया था। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में इस आयोजन को उनके परिवार ने अतलखा के ग्रामीणों को सौंप दिया है, जिससे यह आयोजन अब समुदाय का हिस्सा बन गया है।
मेले की विशेषताएँ
अतलखा का यह मेला केवल धार्मिक समारोह नहीं है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रदर्शक है। मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं, खासकर बड़गांव, नोनेती और गोआरी गांव के निवासी। हर साल, इन गांवों के लोग उत्साह के साथ मेले में शामिल होते हैं, जिससे यह आयोजन और भी भव्य बन जाता है।
मेले की सबसे खूबसूरत विशेषता हैं यहाँ के मिट्टी के बने खिलौने और बर्तन। स्थानीय कारीगर अपने हस्तशिल्प को प्रदर्शित करते हैं, जिससे आगंतुकों को शिल्पकला की बारीकियों का अनुभव होता है। इसके अलावा, मिथिला की प्रसिद्ध झिलिया मुरही का स्वाद लेना भी मेले का एक अहम हिस्सा है। यह खासतौर पर स्थानीय लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है और मेले में आने वाले श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करती है।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
इस मेले का आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है। छोटे व्यापारी, कारीगर और खाद्य विक्रेता हर साल इस मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ होता है। इसके अलावा, यह मेले स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने और उसे संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी बन गया है।
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