मिथिला, विशेष संवाददाता। मिथिला क्षेत्र में जितिया पर्व की विशेष महत्वता है, जो हर साल पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व मातृत्व की भावना को प्रकट करता है और विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए किया जाता है। जितिया पर्व को लेकर मिथिला की संस्कृति में एक विशेष आस्था और परंपरा है, जो इस पर्व को और भी खास बनाती है।
जितिया पर्व का महत्व
जितिया पर्व, जिसे "जितिया" या "जिउतिया" भी कहा जाता है, का आयोजन मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस पर्व के दौरान माताएँ अपने बच्चों के लिए व्रत करती हैं, जिसमें विशेष ध्यान उनकी सेहत और कल्याण पर केंद्रित होता है। यह पर्व विशेष रूप से नवरात्रि के बाद मनाया जाता है, और इसे चतुर्थी तिथि को मनाने की परंपरा है।
इस दिन माताएँ निर्जला व्रत रखती हैं और दिनभर उपवास करती हैं। व्रत के दौरान वे विशेष प्रसाद तैयार करती हैं, जिसमें गुड़, चिउड़े और अन्य मिठाइयाँ शामिल होती हैं। व्रत का समापन पूजा-अर्चना के साथ होता है, जिसमें मां को विशेष रूप से पूजा जाता है।
पर्व की तैयारी
Jitiya पर्व की तैयारी कई दिनों पहले शुरू हो जाती है। महिलाएँ अपने घरों को सजाती हैं, और विशेष रूप से पूजा के लिए सामग्री इकट्ठा करती हैं। इस दिन, घरों में रौनक होती है, और लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। इस पर्व का विशेष आकर्षण है "जितिया के गीत," जिन्हें महिलाएँ एक साथ गाती हैं। ये गीत न केवल पर्व की खुशी को बढ़ाते हैं, बल्कि पारंपरिक संस्कृति को भी संरक्षित करते हैं।
पारिवारिक बंधन और सामुदायिक एकता
Jitiya पर्व केवल एक धार्मिक समारोह नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक बंधनों और सामुदायिक एकता को भी प्रकट करता है। इस दिन महिलाएँ अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करती हैं और एक-दूसरे की मदद करती हैं। यह पर्व रिश्तों को और मजबूत बनाने का काम करता है और सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देता है।
समकालीन संदर्भ
आज के समय में, Jitiya पर्व का महत्व और बढ़ गया है। विभिन्न कार्यक्रमों और सामुदायिक आयोजनों के माध्यम से इसे और अधिक भव्यता से मनाया जा रहा है। इस पर्व के माध्यम से युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
मिथिला का प्रसिद्ध पर्व जितिया: मरुआ रोटी और मारा माछ कचरी
जितिया पर्व मिथिला क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो माताओं द्वारा अपने बच्चों की भलाई के लिए मनाया जाता है। इस पर्व पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें मरुआ रोटी और मारा माछ कचरी प्रमुख हैं।
मरुआ रोटी
मरुआ रोटी विशेष रूप से ज्वारी और बाजरा के आटे से बनाई जाती है। यह रोटी स्वास्थ्यवर्धक होती है और इसे उपवास के दौरान खाया जाता है।
- तैयारी:
- मरुआ का आटा गूंधा जाता है और फिर इसे बेलकर तवे पर सेंका जाता है।
- इसे अक्सर घी या सरसों के तेल के साथ परोसा जाता है, जिससे इसका स्वाद और बढ़ जाता है।
- स्वास्थ्य लाभ:
- यह रोटी ऊर्जा प्रदान करती है और पाचन में मदद करती है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
मारा माछ कचरी
मारा माछ कचरी एक प्रकार का विशेष व्यंजन है जो इस पर्व पर बनाया जाता है। इसे मुख्यतः मछली से तैयार किया जाता है और यह विशेष रूप से स्वादिष्ट होता है।
तैयारी:
- मछली को अच्छी तरह से धोकर मसालों के साथ तैयार किया जाता है।
- इसे आमतौर पर बारीक कटा हुआ प्याज, हरी मिर्च, अदरक, और धनिया के साथ मिलाकर पकाया जाता है।
- यह व्यंजन आमतौर पर चावल या मरुआ रोटी के साथ परोसा जाता है।
स्वास्थ्य लाभ:
- मछली प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत होती है और इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं, जो दिल के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।
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