मिथिलांचल में कुशी अमावस्या (Kushi Amavasya) का दिन खास महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन कुश उखाड़ने की परंपरा का पालन किया जाता है। इस परंपरा को कुशोत्पाटन कहा जाता है। कुश, जो दिखने में साधारण घास जैसा होता है, लंबा और पतला होता है। इसे उखाड़ने से पहले विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है, जो इस विधि के रहस्यों और मान्यताओं को उजागर करता है।
कुश उखाड़ने से पहले इस विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है:
“कुशाग्रह वस्ते रुद्रा कुश मध्य तू केशवहकुश मुले वसे ब्रह्म कुशानमें देही मेदिनी”
इस मंत्र के माध्यम से पृथ्वी (मेदिनी) से निवेदन किया जाता है कि हमें कुश प्रदान करे, जिसमें रुद्र का निवास अग्रभाग में, भगवान विष्णु का मध्य भाग में, और ब्रह्मा का निवास मूल भाग में होता है। यह कुश धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसके माध्यम से भाद्र पूर्णिमा के बाद अगस्त ऋषि का तर्पण किया जाता है, जो पितर पक्ष के प्रारंभ का प्रतीक है।
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