भाद्र शुक्लपक्ष चतुर्थी को चौठचंद पूजा का आयोजन किया जाता है।जिसे मिथिला में चौरचन पर्व कहा जाता है।चौठचंद्र पर्व को लेकर बाजार मे श्रद्धालूओं की भारी भीड़ लगी रही। लोग पर्व को मनाने के फल एवं मिठाई दुकानों पर जमकर खरीददारी कर रहे है।खासकर खीरा नारियल सेव की कीमत बढ़ने के बावजूद जरूरत के अनुसार क्रय की जा रही है।पंडित कामेश्वर झा,रविंद्र झा एवं शिवम कुमार ने बताया कि जैसे कि सूर्य देव की आराधना करने के लिए छठ पर्व मनाए जाते हैं तो इसी तरह चंद्र देव की आराधना करने के लिए चौरचन का त्योहार मनाया जाता है। चौरचन में चन्द्रमा की पूजा संध्या काल में प्रदोष काल मे करना शुभ होगा । इस दिन सुबह से लेकर शाम तक व्रत रखकर शाम में चावल का पीठार पीसकर आंगन में अरिपण तैयार की जाती है। इस त्योहार पर मीठे पकवान, खीर, मिठाई और फल आदि रखे जाते हैं। इस त्योहार में छाछी के दही का बहुत ज्यादा महत्व है।रोहिणी नक्षत्र सहित चतुर्थी में चंद्रमा की पूजा की जाती है।इसके बाद पकवानों से भरी डाली और छाछी वाले दही के बर्तन चंद्र देव को अर्घ लगाये जाते हैं। उन्होंने कहा कि डाली को उठाकर ये मंत्र पढ़ना है। सिंह प्रसेनमवधित्सिंहो जाम्बवताहत :सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक : साथ ही दही को उठा ये मंत्र पढना है। दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम,नमामि शशिनं भक्त्या शंभोर्मुकुट भूषणम्। ज्ञात हो कि भाद्र शुक्लपक्ष चतुर्थीचंद्र का दर्शन बिना फल लिए नही किया जाता है। जो भी व्यक्ति बिना फल फूल मेवा मिष्ठान या श्रद्धा के साथ चंद्रदर्शन नही करते है उनपर झूठे कलंक का दोषारोपण होता है।कहा जाता है भगवान श्रीकृष्ण भी चौठी चान का दर्शन करने पर स्यमन्तक मणि चुराने का आरोप लगा था।इस मिथ्या दोष एवं कलंक से बचने के लिए चौरचन पर्व मनाया जाता है।
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