पटना: मकर संक्रांति के अवसर पर लोक जनशक्ति पार्टी-आर (LJP-R) की ओर से आयोजित दही-चूड़ा भोज, बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बन गया है। इस आयोजन का उद्देश्य जहां एनडीए गठबंधन की एकजुटता प्रदर्शित करना था, वहीं इसके दौरान घटित घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
पार्टी प्रमुख चिराग पासवान इस भोज के आयोजन के लिए विशेष रूप से सोमवार शाम दिल्ली से पटना पहुंचे थे। आते ही उन्होंने पार्टी कार्यालय पहुंचकर तैयारियों का जायजा लिया और मीडियाकर्मियों से बातचीत की। चिराग ने कहा कि यह आयोजन न केवल उनके पिता और पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान की परंपरा को निभाने के लिए है, बल्कि इसका असल मकसद एनडीए गठबंधन के नेताओं के बीच एकता का संदेश देना भी है। चिराग ने यह भी बताया कि भोज के लिए एनडीए के सभी प्रमुख नेताओं को आमंत्रण भेजा गया था।
चिराग की गैरमौजूदगी ने खड़े किए सवाल
हालांकि, भोज के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने इस आयोजन को सुर्खियों में ला दिया। जब भोज में मेहमान पहुंचने लगे, खासकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तो चिराग वहां मौजूद नहीं थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंत्री विजय चौधरी और अन्य नेताओं के साथ पहुंचे और रामविलास पासवान की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। लेकिन तब तक चिराग कहीं नज़र नहीं आए। जानकारी मिलते ही चिराग जल्दी-जल्दी कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, लेकिन तब तक नीतीश कुमार आयोजन स्थल से जा चुके थे।
इस घटना ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। क्या यह चिराग की रणनीति थी या महज एक संयोग? इस सवाल ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
दही-चूड़ा भोज: बिहार की सियासी परंपरा
बिहार में मकर संक्रांति के अवसर पर दही-चूड़ा भोज राजनीतिक बयानबाजी और गठबंधन की ताकत दिखाने का मंच बनता रहा है। पिछले साल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने दही-चूड़ा भोज आयोजित किया था। उस भोज में नीतीश कुमार ने लालू यादव से दही का टीका लगवाया था, जो उस समय एक बड़ा राजनीतिक संदेश माना गया। इसके कुछ ही दिनों बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया और एनडीए में वापसी कर ली।
इसलिए इस बार जब नीतीश कुमार चिराग के भोज में पहुंचे और वहां चिराग की गैरमौजूदगी दर्ज की गई, तो राजनीतिक पंडितों ने इसे संभावित रणनीति का हिस्सा समझना शुरू कर दिया।
नीतीश कुमार की त्वरित विदाई: क्या था संदेश?
नीतीश कुमार की उपस्थिति भोज में महज कुछ मिनटों तक सीमित रही। उन्होंने रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि दी और तुरंत आयोजन स्थल से निकल गए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश की यह त्वरित विदाई इस बात का संकेत हो सकती है कि एनडीए में सब कुछ सामान्य नहीं है।
हालांकि, नीतीश कुमार ने सोमवार को उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के दही-चूड़ा भोज में भी भाग लिया था, जहां ऐसा कोई विवाद नहीं हुआ। इससे यह भी सवाल उठता है कि चिराग के भोज में हुई यह घटना केवल संयोग थी या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी थी।
क्या चिराग की गैरमौजूदगी रणनीतिक चाल थी?
चिराग पासवान ने अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाने और एनडीए में अपनी भूमिका को मजबूत करने के लिए यह आयोजन किया था। लेकिन भोज के दौरान उनकी गैरमौजूदगी ने इसे सियासी गलियारों में बहस का मुद्दा बना दिया। कुछ लोगों का मानना है कि चिराग जानबूझकर उस समय गायब रहे ताकि यह संदेश दिया जा सके कि एनडीए में नेतृत्व को लेकर असमंजस है। वहीं, कुछ इसे महज एक गलतफहमी मान रहे हैं।
भविष्य की राजनीति पर क्या होगा असर?
यह घटना एनडीए में चिराग पासवान की स्थिति और गठबंधन के भीतर समीकरणों को लेकर कई सवाल खड़े कर रही है। नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच लंबे समय से चली आ रही खटास किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस घटना के बाद एनडीए के भीतर रिश्ते किस दिशा में बढ़ते हैं।
बिहार की राजनीति में मकर संक्रांति के दही-चूड़ा भोज को लेकर चर्चा कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार का भोज केवल परंपरा निभाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सियासत के नए आयाम जोड़ने का मंच बन गया। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस भोज की गूंज एनडीए की एकजुटता पर सकारात्मक प्रभाव डालती है या नए विवादों को जन्म देती है।
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