बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा के तहत घाटकुसुम्भा प्रखंड के गगौर गांव में आगमन को लेकर प्रशासन ने पूरी ताकत झोंक दी है। गांव के हर कोने को चमकाने की कवायद जारी है। सड़कों की मरम्मत से लेकर सरकारी भवनों की रंगाई-पुताई तक का काम तेजी से पूरा किया जा रहा है। सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं और हर मोड़-चौराहे पर पुलिस बल तैनात किए गए हैं। लेकिन स्थानीय ग्रामीणों की शिकायतें और अनुभव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं।
गगौर गांव की बदली तस्वीर
सीएम की यात्रा से पहले ही गांव की तस्वीर बदलने का काम जोरों पर है। प्रशासन ने गांव की टूटी गलियों और नालियों की मरम्मत पूरी कर दी। सरकारी स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, पंचायत भवन, स्वास्थ्य केंद्र और खेल मैदान को रंग-रोगन कर सुंदर बना दिया गया है। गगौर की सड़कों की मरम्मत कर दी गई है ताकि मुख्यमंत्री को कोई शिकायत सुनने को न मिले। विभिन्न विभागों के काउंटर स्टॉल लगाए गए हैं, जहां सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाएगी।
डीएम आरिफ अहसन के नेतृत्व में प्रशासनिक अमला गांव को चकाचक बनाने में जुटा हुआ है। अधिकारियों की बैठकें दिन-रात जारी हैं और हर कोने की सफाई और सजावट पर ध्यान दिया जा रहा है।
तीन लेयर की सुरक्षा व्यवस्था, चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात
मुख्यमंत्री की सुरक्षा को लेकर तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई है। गगौर गांव, शहर के गोल्डन चौक से लेकर महसार गांव तक हर जगह पुलिस बलों की तैनाती की गई है। पटना से सीएम के विशेष सुरक्षा अधिकारी और अन्य प्रशासनिक पदाधिकारी भी पहुंच चुके हैं।
"मुख्यमंत्री के आगमन को देखते हुए हेलीपैड, स्कूल, अस्पताल, गलियों और बैरिकेडिंग की सख्ती से जांच की जा रही है। स्थानीय पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से सुरक्षा में जुटा हुआ है।"
ग्रामीणों के आरोप: दिखावटी विकास और जल्दबाजी में अधूरे काम
हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन सिर्फ मुख्यमंत्री के आगमन से पहले दिखावटी विकास पर जोर दे रहा है।
ग्रामीणों ने कहा कि महसार गांव में भी पिछले साल मुख्यमंत्री के दौरे से पहले ठीक यही तैयारियां हुई थीं। पंचायती राज का सपना साकार करने के लिए करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। गांव को एकदम शहर जैसा बना दिया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री के जाते ही सब फिर से बदहाल हो गया।
ग्रामीणों की प्रमुख शिकायतें:
- जल्दबाजी में घटिया निर्माण कार्य हुआ – जो सड़कें बनीं, वे कुछ महीनों में टूट गईं।
- पंचायत सरकार भवन की हालत खराब – खिड़कियों के शीशे टूटे, दरवाजे बंद रहते हैं।
- बिजली-पानी की बर्बादी – सरकारी दफ्तरों में पंखे दिन-रात चलते रहते हैं, कोई देखने वाला नहीं।
- जिम और पार्क की दुर्दशा – जिम के उपकरण टूट चुके हैं, पार्क में अब हरियाली नहीं बची।
- जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत लगाए गए पौधे गायब – गड्ढे भर दिए गए, लेकिन पौधे सूख गए या उखाड़ लिए गए।
- पानी निकासी की व्यवस्था फिर से खराब – गांव की गलियों में गड्ढे बन गए, जहां भैंसे आराम से बैठी रहती हैं।
"मुख्यमंत्री के आने से पहले करोड़ों रुपए खर्च कर गांव को चकाचक कर दिया जाता है, लेकिन उनके जाने के बाद गांव फिर से उसी स्थिति में लौट आता है।" - एक ग्रामीण
क्या गगौर गांव को भी महसार की तरह भुला दिया जाएगा?
ग्रामीणों को डर है कि महसार की तरह गगौर गांव का भी हाल होगा। वर्तमान में जो भी विकास कार्य किए जा रहे हैं, वे सिर्फ मुख्यमंत्री के दौरे तक सीमित हैं। लेकिन जैसे ही वह यहां से जाएंगे, प्रशासन फिर से आंखें मूंद लेगा।
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि कई सरकारी योजनाएं कागजों पर ही रह जाती हैं। जो लाभ जनता को मिलना चाहिए, वह बिचौलियों और अधिकारियों की लापरवाही के कारण पूरी तरह से नहीं मिल पाता।
"हर बार यही होता है – सीएम आते हैं, चमक-दमक दिखती है, लेकिन कुछ ही महीनों बाद सबकुछ पहले जैसा हो जाता है। हमें असली विकास चाहिए, सिर्फ दिखावा नहीं।" - स्थानीय निवासी
निष्कर्ष: वास्तविक प्रगति या सिर्फ दिखावटी बदलाव?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा के तहत गांवों को सजाने और सुधारने की कोशिशें जारी हैं। गगौर गांव में भी जोर-शोर से काम हो रहा है। लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए ग्रामीणों को इस बदलाव की स्थायित्व पर संदेह है।
अब सवाल यह है कि क्या गगौर गांव की सूरत मुख्यमंत्री के जाने के बाद भी वैसी ही बनी रहेगी या फिर महसार गांव की तरह यह भी कुछ महीनों में फिर से अपनी पुरानी बदहाली में लौट आएगा? ग्रामीणों की उम्मीदें हैं, लेकिन वे सरकार से स्थायी और टिकाऊ विकास की मांग कर रहे हैं।
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