पटना: बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने बड़ा राजनीतिक दांव खेलते हुए 20 से ज्यादा सीटों की मांग कर दी है। यह मांग बिहार की सियासत में नए समीकरणों को जन्म दे सकती है और एनडीए के भीतर खींचतान को बढ़ा सकती है।
"कम सीटें मंजूर नहीं" - मांझी का सख्त रुख
रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान जीतन राम मांझी ने स्पष्ट कर दिया कि अगर उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं, तो वे अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
उन्होंने कहा, "हमारी पार्टी इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में 20 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हम अपनी ताकत के हिसाब से सीटों की मांग कर रहे हैं और एनडीए को हमें हमारी राजनीतिक ताकत के अनुरूप सीटें देनी होंगी।"
मांझी के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि वे इस बार किसी भी तरह की समझौता वाली राजनीति नहीं करने वाले हैं।
एनडीए में बढ़ सकती है खींचतान
बिहार में एनडीए (NDA) के प्रमुख घटक दलों में भाजपा (BJP), जनता दल यूनाइटेड (JDU) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) शामिल हैं। इस बीच मांझी की 20 से ज्यादा सीटों की मांग ने एनडीए के भीतर हलचल मचा दी है।
विशेष रूप से भाजपा और जदयू पहले ही सीट बंटवारे को लेकर चर्चा में हैं, ऐसे में मांझी की यह मांग गठबंधन के भीतर असंतोष को जन्म दे सकती है।
मांझी का दलित वोट बैंक पर दावा
जीतन राम मांझी दलित समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं, और उनकी पार्टी महादलित वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती है। बिहार में महादलितों की संख्या करीब 16% है, और मांझी इसी आधार पर ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा,
"हमारी पार्टी बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हम महादलितों की आवाज हैं और हमें हमारी ताकत के हिसाब से सीटें मिलनी चाहिए।"
क्या एनडीए से अलग हो सकते हैं मांझी?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को उनकी मांग के अनुसार सीटें नहीं दी जाती हैं, तो मांझी बड़ा कदम उठा सकते हैं। वे पहले भी एनडीए और महागठबंधन दोनों से नाता तोड़ चुके हैं, इसलिए उनके भविष्य के कदम को लेकर राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज हो गई हैं।
अगर एनडीए ने उनकी मांग नहीं मानी तो क्या मांझी महागठबंधन (RJD, Congress) की तरफ जाएंगे? या फिर अपनी अलग राह चुनेंगे? यह बड़ा सवाल बन गया है।
2020 के चुनाव में क्या हुआ था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में HAM ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी, और बाद में जदयू (JDU) में विलय कर लिया था। अब अगर मांझी दोबारा अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए अलग रणनीति अपनाते हैं, तो इससे बिहार की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।
भाजपा-जदयू की क्या होगी रणनीति?
भाजपा और जदयू को अब यह तय करना होगा कि वे HAM को कितनी सीटें देने के लिए तैयार हैं। अगर उनकी मांग पूरी नहीं होती है, तो एनडीए में दरार पड़ सकती है।
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा फिलहाल मांझी को 10 से 12 सीटें देने के पक्ष में है, लेकिन मांझी इससे कम पर राजी नहीं हैं।
आने वाले दिनों में बढ़ेगी राजनीतिक सरगर्मी
बिहार में चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक उठापटक तेज होने वाली है। मांझी की मांग के बाद अब यह देखना होगा कि एनडीए नेतृत्व इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है।
अगर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को मनाने में एनडीए नाकाम रहता है, तो बिहार की राजनीति में नई सियासी हलचल मच सकती है।
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