— सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है दोनों पर्वों का महत्व, स्वास्थ्य और शुद्धि का प्रतीक है जुड़ शीतल
सहरसा। ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान, डॉ. रहमान चौक, सहरसा के ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा के अनुसार, इस वर्ष सतुआइन का पर्व 14 अप्रैल, सोमवार को, और जुड़ शीतल 15 अप्रैल, मंगलवार को मनाया जाएगा। इन दोनों पर्वों का गहरा संबंध सूर्य के राशि परिवर्तन और प्रकृति के नवजीवन से जुड़ा हुआ है।
पंडित झा ने बताया कि 14 अप्रैल को सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यह समय नववर्ष की शुरुआत और ऋतु परिवर्तन का संकेत होता है। इसी उपलक्ष्य में सतुआइन का पर्व मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से धर्म, परंपरा और स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ माना जाता है।
सतुआइन का महत्व: पौराणिक आस्था और सामाजिक परंपरा
सतुआइन का पर्व ग्रामीण भारत, विशेषकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग सत्तू, गुड़, कच्चा आम, दही, आम का टिकोला और नीम के पत्तों का सेवन करते हैं। इसे गर्मी के आगमन में शरीर को शीतल बनाए रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का पारंपरिक तरीका माना जाता है।
पंडित झा बताते हैं कि यह दिन "धरती माता" की पूजा का भी प्रतीक है। महिलाएं खेत-खलिहानों में जाकर वहां की मिट्टी को प्रणाम करती हैं और अन्न के भंडार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। इस दिन पके हुए नहीं बल्कि ठंडे और सादे भोजन का सेवन करने की परंपरा है, जिसे "बासी खाना" कहा जाता है।
जुड़ शीतल: घर-आंगन की शुद्धि और प्रकृति के प्रति आभार
15 अप्रैल को मनाया जाने वाला जुड़ शीतल बिहार का एक प्रमुख पारंपरिक पर्व है। इस दिन लोग एक दिन पहले रखा गया शीतल जल, जो मिट्टी के घड़े या शंख में ढककर रखा जाता है, का उपयोग करते हैं। प्रातःकाल उठकर इस जल को घर-आंगन में छिड़का जाता है। मान्यता है कि इससे घर में शांति, शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
जुड़ शीतल की परंपरा केवल शुद्धि तक सीमित नहीं है। यह पर्व जल संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। पंडित झा के अनुसार, "जब सूर्य मीन राशि छोड़कर मेष में प्रवेश करते हैं, तो उनकी रश्मियों में विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है। यह समय अमृतधारा की वर्षा का काल माना जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।"
बासी भोजन की महिमा: परंपरा और विज्ञान का मेल
इस दिन बासी भोजन करने की परंपरा को केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी माना जाता है। माना जाता है कि बासी खाना, विशेषकर जब वह मिट्टी के पात्र में रखा गया हो, उसमें रोग प्रतिरोधक गुण होते हैं और यह शरीर को ठंडक प्रदान करता है। खासकर गर्मी की शुरुआत में यह शरीर को अनुकूल वातावरण में ढालने में सहायक होता है।
त्योहार के पीछे का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संदेश
दोनों पर्वों में प्रकृति के प्रति सम्मान, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और सामाजिक समरसता का भाव देखने को मिलता है। एक ओर सतुआइन के माध्यम से हम अपने शरीर को मौसम के अनुरूप ढालने की तैयारी करते हैं, वहीं दूसरी ओर जुड़ शीतल के जरिये हम घर और परिवेश की शुद्धता को महत्व देते हैं।
पंडित तरुण झा ने सभी श्रद्धालुजनों से अपील की है कि वे इन पर्वों को पारंपरिक रीति-नीति के साथ मनाएं और अपने बच्चों को भी इन सांस्कृतिक धरोहरों से जोड़ें।
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