Live

6/recent/ticker-posts

चंद्रा टाइम्स

चंद्रा टाइम्स

बिहार का बेटा, बॉलीवुड का बाज़ीगर: Pankaj Jha की कहानी



सहरसा, बिहार। एक ऐसा इलाका जिसे लोग विकास की रफ्तार से दूर मानते हैं, लेकिन वहीं से एक ऐसा चेहरा उभरा जिसने अपने हुनर से बॉलीवुड की भीड़ में अपनी अलग पहचान बनाई—पंकज झा

पंकज झा की शुरुआत चमकते कैमरों और बड़े शहरों से नहीं हुई। जब वो पटना आर्ट कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके पास ज़्यादा साधन नहीं थे। पिता हर महीने सिर्फ 500 रुपये भेजा करते थे। इतने में ज़िंदगी चलाना आसान नहीं था, लेकिन पंकज झा ने हार नहीं मानी।

उस दौर में उन्होंने अखबारों के लिए स्केचिंग करना शुरू किया। कागज़ पर उनके ब्रश और पेंसिल की लकीरों में कला झलकती थी। लेकिन पंकज का मन सिर्फ चित्रों में नहीं अटका था—वो कुछ और बनना चाहते थे, खुद को किसी और शक्ल में दुनिया के सामने लाना चाहते थे।

इसके बाद वो दिल्ली पहुंचे, और यहीं उनकी ज़िंदगी ने करवट ली।
मीरा नायर, जो उस समय Monsoon Wedding बना रही थीं, उन्होंने ढाई सौ कलाकारों के बीच से पंकज झा को चुना। यह मौका किसी lottery से कम नहीं था। और पंकज ने इस मौके को पूरे दमखम के साथ पकड़ लिया।

जब पहली बार मुंबई आए, तो सिर्फ सात दिन के लिए ठहरे थे, वो भी नसीरुद्दीन शाह के घर। वहीं एक वर्कशॉप हुई, और वहीं से उनके अभिनय की यात्रा को असली दिशा मिली। उस छोटे से स्टे ने बड़ा रास्ता दिखाया।

धीरे-धीरे, छोटे-छोटे रोल करते हुए उन्होंने खुद को साबित किया। 'चमेली', 'गुलाल', 'ब्लैक फ्राइडे', 'मातृभूमि', 'अनवर'—हर फिल्म में वो भले सपोर्टिंग रोल में रहे हों, लेकिन उनकी मौजूदगी कभी भी हल्की नहीं रही। और फिर आया वो रोल जिसने उन्हें हर गली-मोहल्ले तक पहुंचा दिया—‘पंचायत 2’ में विधायक चंद्रभूषण दुबे का किरदार।

न कोई ओवरड्रामेटिक एक्टिंग, न स्टारडम का दिखावा। सिर्फ रियल और खरा अभिनय, जो सीधे दिल में उतर जाए।

लेकिन पंकज झा सिर्फ अभिनेता नहीं हैं। वो पेंटर हैं, लेखक हैं, और निर्देशक भीपुणे में उनका खुद का आर्ट स्टूडियो है, जहां वो अब भी कला के अलग-अलग रूपों में खुद को ढालते रहते हैं। अब तक छह बार सोलो पेंटिंग एग्जीबिशन कर चुके हैं और 25 से भी ज़्यादा फिल्मों में लीड रोल निभा चुके हैं।

उनकी कहानी इस बात का सबूत है कि बड़े सपनों के लिए बड़ी जेब नहीं, बस बड़ा इरादा चाहिए।

पंकज झा वो नाम है जो चुपचाप काम करता है, लेकिन जब पर्दे पर आता है तो सबको चौंका देता है।
वो स्टार नहीं बने, वो कलाकार बने। और यही उनकी सबसे बड़ी जीत है।

अगर कभी लगे कि रास्ता मुश्किल है, तो पंकज झा को याद कर लेना—
सहरसा से चले थे, लेकिन मंज़िल कहीं भी हो सकती है।

Post a Comment

0 Comments